इस बसन्त का पावन सन्देश

March 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“पावन वर्ष बसन्त कह रहा,

हम उपास्य को भूल न जायें।

नहीं बहाएँ आँसू ही हम,

सृजन कार्य का शंख बजायें।”

इन पंक्तियों के सस्वर गायन के साथ पूज्य गुरुदेव के जीवन वृत्त पर बनी विराट प्रदर्शनी के उद्घाटन के पश्चात् 1991 के बसन्तपर्व का शुभारंभ हुआ। वन्दनीया माताजी ने पाँच हजार परिजनों को उद्बोधन देते हुए कहा- “इस अवसर पर जुदाई का दर्द, एक पीड़ा, एक कसक हम सबके मन में है। किन्तु यह बसन्तपर्व जो स्थूल शरीर से पूज्य गुरुदेव की अनुपस्थिति में पहला है, हमें सतत् अपनी जिम्मेदारियों की याद दिला रहा है। वे सूक्ष्म व कारण शरीर से संव्याप्त होकर सतत् हमें स्मरण दिला रहे हैं कि जो कार्य अधूरा छूटा पड़ा है उसे उन ब्रह्मबीजों को पूरा करना है जो ब्रह्म कमल के रूप में विकसित होने के लिए वे छोड़ गए हैं।”

वंदनीया माताजी ने भावविह्वल होकर हृदय को छू लेने वाली अपनी वाणी में कहा कि “यह दीक्षा दिवस है, संकल्प दिवस है। आँसू सहज ही उन्हें याद करके आते हैं फिर भी दृढ़तापूर्वक रोक लगानी होगी। पूज्य गुरुदेव अपने आध्यात्मिक जन्मदिवस पर कभी आँसू पसन्द नहीं करते थे। न खुशी के, न दुख के। वे तो इस समय ऊपर से बैठे यह देख रहे हैं कि जिन दायित्वों को वे छोड़ कर आए हैं, उन्हें निभाया गया ही नहीं। कार्यों में वृद्धि हुई या नहीं?”

“आज से एक वर्ष पूर्व ही उनने “बसंतपर्व पर महाकाल का सन्देश” नामक परिपत्र लिखा था 80 ब्रह्म कमल के खिलने व अब मुरझाने जा रहे स्थूल शरीर की उनकी भविष्य वाणी थी। साथ ही यह भी लिखा था कि युग परिवर्तन का बीजारोपण हो चुका। अब खाद पानी भर देना शेष है। यह कार्य परिजन कर सकें, इसके लिए उन्हें परिपूर्ण शक्ति मिल सके, इस प्रयोजन के लिए बाधक बन रहे, विद्रोही रहे शरीर रूपी पिंजर से वे मुक्ति चाहते थे। इस मुक्ति की पूर्व घोषणा गायत्री जयंती से 5 माह पूर्व ही बसंत की पूर्ववेला में उनने कर दी थी।”

वन्दनीया माताजी ने यह बताते हुए आश्वासन भरे शब्दों में कहा कि “वे मुझे हर बच्चे को स्नेह-ममता बाँटते रहने का तथा उँगली पकड़ कर मार्ग दिखाते रहने का दायित्व सौंप गए हैं, जिसे मैं सतत् निभाती रहूँगी। यह मिशन हजारों-लाखों वर्षों तक चलेगा क्योंकि दैवी शक्ति इसके साथ है। ऐसे सबल हाथों में-शक्तिशाली, समर्थ, परोक्ष सत्ता के हाथों में मिशन का सूत्र संचालन है कि, न तो किसी को शंका करनी चाहिए, न ही भटकना चाहिए। यदि यह व्यक्ति पर टिका मिशन होता तो व्यक्ति के साथ ही समाप्त भी हो जाता। यह शक्ति पर टिका अभियान है, दैवी अभियान है। विवेकानन्दों-निवेदिताओं ने अभी अपनी प्रसुप्त क्षमता को पहचाना नहीं है। यदि सभी जाग्रत आत्माओं को यह अनुमान हो सके कि वे क्या हैं व किन उद्देश्यों के लिए उनका अवतरण हुआ था तो देखते-देखते प्रतिकूलताओं के बीच भी नवसृजन होता चला जाएगा। पूज्यवर की परोक्ष जगत से व मेरी प्रत्यक्ष जगत से तपश्चर्या इन्हीं उद्देश्यों के निमित्त है।”

अंत में वन्दनीया माताजी ने कहा कि गुरु शिष्य परस्पर मजबूत धागों से जुड़ें होते हैं। आज गुरुजी का बोध दिवस है जन्मदिवस है। इस अवसर पर सब उन्हें श्रद्धाँजलि दें इस संकल्प के रूप में कि आजीवन गुरुदेव के पद चिन्हों पर ही सब चलेंगे, वैसा ही उल्लास मन में बनाए रखेंगे तथा विद्या विस्तार के सभी महत्वपूर्ण दायित्वों को अंतिम स्थिति तक पहुँचा कर रहेंगे। लोक मंगल के लिए ही सबका समर्पित जीवन होगा। घर घर में गुरुजी के विचार पहुँचा कर ही रहेंगे।”

“अंतर के निर्मल प्यार हो तुम, भगवान मेरा संसार हो तुम” वंदनीया माताजी के स्वर में गायी गई इन पंक्तियों के साथ भाव भरे वातावरण में वंदनीया माताजी का उद्बोधन समाप्त हुआ। अखण्ड दीपक के दर्शन व नमन-वन्दन के पश्चात् संध्याकाल में सभी ने नये बने प्रज्ञा रथों के 100 इंच के पर्दों पर नयी बनी तीन वीडियो फिल्में देखीं। इस वर्ष का बसंत नये संकल्प, नये उल्लास के साथ इस प्रकार सम्पन्न हुआ।

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118