आड़े समय में परिजनों से सहयोग की अपेक्षा

November 1991

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परम पूज्य गुरुदेव की वाणी, उनका हृदय तथा उनका अंतःकरण तीनों “अखण्ड-ज्योति” में समाहित हैं। यह वह पावन प्रवाह है जो अविरल गति से बढ़ता व मूर्च्छितों में जीवन स्पन्दन पहुँचाता रहेगा। 1940 में प्रज्वलित की गयी यह ज्योति घोर तमिस्रा भरे समय में भी अपने पुरुषार्थ से प्रकाश किरणें बिखेरकर आदर्शवादी दुस्साहस दिखाती रही है। लाखों परिजन साक्षी हैं इस तथ्य के कि आज के विषम समय में आशावाद की लौ इस ज्योति के प्रकाश से ही जलती रही है व अगणित को श्रेष्ठता के पथ पर चलने की प्रेरणा मिली है स्वयं परोक्ष दैवी सत्ता महाकाल जिसका संचालन कर रहा हो उस तंत्र का यह जीता-जागता दृश्य रूप है।

अखण्ड-ज्योति मात्र कागज का, कतिपय लेखों का पुलिन्दा नहीं, अपितु वह संकल्प है जो नवयुग की स्थापना को लेकर जन्मा है व लक्ष्य पूरा होने तक अपना दायित्व निभाएगा किन्तु परोक्ष शक्ति को भी साधन तो प्रत्यक्ष ही चाहिए। अखबारी कागज, स्याही, छपाई की व्यवस्था का विशाल तंत्र आदि वे प्रत्यक्ष साधन हैं, जिनके अभाव में विचार चाहे वह कितना ही सशक्त क्यों न हो, जन-जन तक नहीं पहुँचाया जा सकता। विगत पाँच-छः वर्षों से इस क्षेत्र में अनेक झंझावात आए हैं व इन असाधारण आर्थिक आक्रमणों से डर लगता है कि कहीं ज्योति को वे प्रभावित न करें। परम सत्ता की अनुकम्पा व प्रिय पाठक परिजनों का सद्भाव ही है कि उसका अस्तित्व बना हुआ है। आघातों को सहने की शक्ति बनी हुई है।

इस वर्ष कागज, स्याही, छपाई तथा पोस्टेज में असाधारण वृद्धि हुई है। विशेष रूप से कागज की दरों में पैंसठ प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी ने तो कमर तोड़ संकट पैदा कर दिया है। मन तो इस वर्ष यह था कि संजीवनी विद्या, सावित्री विज्ञान, गायत्री उपासना, जीवन जीने की कला, ब्रह्मवर्चस् शोध तथा भविष्य विज्ञान पर अति महत्वपूर्ण सामग्री और दी जाय। उसी कड़ी में इस वर्ष एक विशेषाँक गायत्री उपासना पर तथा पूज्य गुरुदेव के जीवन के लीला प्रसंगों पर एक अंक निकाला गया था। यदि यह सामग्री यथावत देते रहना है तो कागज का संकट सामने आ खड़ा होता है व वर्तमान दरों पर ही अखण्ड-ज्योति के साथ पृष्ठ कम करने की बात कहता है। दूसरा विकल्प यह है कि सामग्री दी जाती रहे, परिजनों को इस महत्वपूर्ण लाभ से वंचित न किया जाय एवं चन्दा इतना बढ़ा दिया जाय कि लागत मूल्य पर पत्रिका सब तक पहुँचती रहे। कोई भी परिजन सामग्री में घटोत्तरी के लिए तैयार नहीं है। मन सबका यही है कि युग संधि के इन महत्वपूर्ण वर्षों में मिल रहे इस बहुमूल्य मार्गदर्शन से हमें वंचित न किया जाय।

निर्णय यही लिया गया है कि बजाय कलेवर कम करने के चंदा पैंतीस रुपया वार्षिक से बढ़ाकर चालीस रुपया वार्षिक कर दिया जाय। यह निर्णय 1992 की जनवरी से प्रभावी होगा। अब बढ़े हुए कलेवर में वह सारी विशिष्ट सामग्री दी जाती रहेगी जो परम पूज्य गुरुदेव की लेखनी द्वारा लिखी जाती रही है व इक्कीसवीं सदी के आगमन तक सतत् प्रकाशन हेतु उपलब्ध है। अन्यान्य नये आकर्षण भी पत्रिका में रहेंगे जो उसे जन-जन की लोकप्रिय आध्यात्मिक पाठ्य सामग्री बनाते रहे हैं।

परिजनों को स्मरण होगा कि इस वर्ष प्रायः सभी पत्रिकाओं के मूल्यों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। “कादम्बिनी” मासिक 84 रुपये वार्षिक, “सरिता” 240 रुपये वार्षिक “सर्वोत्तम” डाइजेस्ट 190 रुपये वार्षिक तथा “इण्डिया टुडे” 240 रुपये वार्षिक पर आज सबको उपलब्ध हैं। अखण्ड-ज्योति से आधे कलेवर वाली पत्रिकाओं का भी चन्दा इसके वर्तमान वार्षिक मूल्य से कहीं ज्यादा है। ऐसे में अपनी प्राणों से प्रिय पत्रिका के सतत् इससे जुड़े रहेंगे, ऐसी अपेक्षा है।

इक्कीसवीं सदी की सतयुग लाने वाली महान क्रान्ति का अपने अनोखे ढंग से संचालन अखण्ड-ज्योति ही कर रही है। इस पत्रिका की सदस्य संख्या बढ़ाने का सीधा अर्थ है युग परिवर्तन के पुण्य प्रयोजन में अपनी भी एक अंजुलि चढ़ाना। आशा है कि इस संदर्भ में परिजन पहले से भी अधिक पुरुषार्थ करेंगे। नये पाठक-ग्राहक बढ़ाएँगे तथा पुरानों का उत्साह बढ़ाते रहेंगे। अब इस पत्रिका का बढ़ा हुआ मूल्य 40 रुपये वार्षिक ही अखण्ड-ज्योति संस्थान मथुरा के पते पर भेजा जाय। आजीवन ग्राहकों का चन्दे का मूल्य पाँच सौ पचास रुपया रहेगा।

वर्ष-53 संस्थापक- वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वार्षिक चंदा-

अंक-11 भारत में 35/-

नवम्बर-1991 विदेश में 300/-

वि.सं. अषाढ़ =श्रावण-2048 आजीवन 500/-


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