નારી શૃંગારિકતા નહિ, પવિત્રતા છે

मनुष्य का वास्तविक सौन्दर्य उसके सुन्दर दृष्टिकोण में निहित है ।। बाहरी आँखें स्थूल दर्शन में सक्षम हैं जो सौन्दर्य का मूल्यांकन बाह्य रूप में आधार पर करती हैं ।। इसे शाश्वत सौन्दर्य नहीं कहा जा सकता ।। सौन्दर्य आत्मा का विषय है ।। आत्मा की सुषमा अक्षुण्ण चिरनूतन तथा प्रेम- परक होती है ।। प्रेम पारस की प्रतीक है जो असुन्दर को सुन्दर और कुरूप को रूपवान बना देता है ।। नारी के सौन्दर्य में विश्व की सुन्दरता समाहित है ।। नारी कोमलता, वात्सल्य, सेवा, सहिष्णुता एवं समर्पण रूपी दिव्य सौन्दर्य की प्रतिकृति है ।। सृजन नारी का दूसरा नाम है ।। श्रद्धा एवं शील में उसकी अलौकिक सुषमा छिपी होती है ।। अनंत वत्सला नारी कवीन्द्र- रवीन्द्र की दृष्टि में सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है ।। सृष्टि में वात्सल्य, स्नेह, ममत्व, प्रेम की अमृत धाराएं नारी के हृदय से निकल कर इस संसार को अमृत दान कर रही हैं ।। कवि रस्किन नारी के आंतरिक सौष्ठव से परिचित है | वह कहता है- माता का हृदय एक स्नेहपूर्ण निर्झर है जो सृष्टि के आदि से अनवरत झरता हुआ मानवता का सिंचन कर रहा है ।' अभागा मनुष्य नारी के अनुदानों को विस्मृत कर उसे कामिनी और रमणी के

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118