प्रमुख धर्मिक प्रश्नों का उचित समाधान आदेश बनाम विवेक सिद्धांतों का परीक्षण करना आवश्यक है क्योंकि परस्पर विरोधी सिद्धांतों का सर्वत्र अस्तित्व प्राप्त होता है । एक ओर जहां हिंसा को, बलिदान या कुर्बानी को, धर्मों में समर्थन प्राप्त है, वहां ऐसे भी धर्म हैं जो जीवों की हत्या तो उन्हें कष्ट पहुंचाना भी पाप समझते हैं । इसी प्रकार ईश्वर, परलोक, अहिंसा, पवित्र अवतार, पूजा विधि, कर्मकाण्ड, देवता आदि विषयों के मतभेदों से भरे पड़े हैं । सामाजिक क्षेत्रों में वर्णभेद, स्त्री अधिकार, शिक्षा, रोटी, बेटी आदि प्रश्रों के सम्बन्ध में परस्पर विरोधी विचारों की प्रबलता है । राजनीति में प्रजातन्त्र, साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, अधिनायकवाद, समाजवाद आदि अनेक प्रकार की परस्पर विरोधी विचारधाणऐं काम कर रही हैं । उपरोक्त सभी प्रकार की विचारधाराऐं आपस में खूब टकराती भी है । उनके समर्थक और विरोधी व्यक्तियों की संख्या भी कम नहीं है । जबकि सिद्धांतों में इस प्रकार के घोर मतभेद विद्यमान हैं तो एक निष्पक्ष जिज्ञासु के लिए, सत्य शोधक के लिए उनका परीक्षण आवश्यक है । जब तक यह परख न लिया जाय कि किस पक्ष की बात सही है, किसकी गलत-तब तक सत्य के समीप तक नहीं पहुंचा जा सकता । यदि परीक्षा और समीक्षा को आधार न बनाया जाय तो किसी अन्य प्रकार से उपयोगी और अनुपयोगी की परख नहीं हो सकती ।