जड़ नहीं, प्रगतिशील बनें।

January 1991

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परिवर्तन एक अनिवार्य प्रक्रिया है। संसार की हर वस्तु समयानुसार बदलती है। शैशव, यौवन, बुढ़ापा और मृत्यु की शृंखला ही इस संसार को गतिशील, स्वच्छ और सुन्दर बनाये हुए है। जड़ता तो मात्र कुरूपता को ही जन्म देती है।

सामाजिक ढर्रे जब बहुत पुराने हो जाते हैं, तब उनमें जीर्णता और कुरूपता उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक है। इसे सुधारा और बदला जाना चाहिए। समय की प्रगति से जो पिछड़ जाते हैं, समय उन्हें कुचलते हुए आगे बढ़ जाता है। ऋतु परिवर्तन के साथ आहार-विहार की नीति भी बदलनी पड़ती है। युग की माँग और स्थिति को देखकर हमें सोचना चाहिए कि वर्तमान की आवश्यकताएँ हमें क्या सोचने और करने के लिए विवश कर रही हैं। विचारशीलता की यही माँग है कि आज की समस्याओं को समझा जाय और सामयिक साधनों से उन्हें सुलझाने का प्रयत्न किया जाय।

जो पुराना सो ठीक, जो अभ्यास में है, वही सही यह आग्रह बौद्धिक जड़ता का चिन्ह है। जीवितों को जड़ नहीं होना चाहिए। चेतनता ही मनुष्य का आभूषण है, उसकी शोभा है। चेतनता इस बात में है कि वर्तमान को समझें और अपने नवनिर्माण का सुदृढ़ आधार विनिर्मित करें।


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