मनुस्मृति में गायत्री के उद्भव के सम्बन्ध में यह कथा पाई जाती है कि इस सृष्टि के कर्ता ब्रह्मा ने ऋक्, यजु और साम-इन तीन वेदों से क्रमशः ‘अ’ ‘उ’ ‘म’ तीन अक्षर निकाले और एकाक्षर ‘ओम्’ की रचना की। इसके साथ पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग के प्रतीक स्वरूप भूः भुवः स्वः को उसमें सम्मिलित किया गया। तत्पश्चात् ब्रह्माजी ने ‘तत् सवितुः’ आदि से प्रारम्भ करके पवित्र गायत्री मंत्र के अन्य अक्षरों की रचना करते हुए तीन मात्राओं का दोहन किया।
इस मंत्र की उपासना से आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक इन तीनों तापों से मुक्ति मिलती है। गायत्री की उपासना से अविद्या काम और कर्म इन तीन ग्रन्थियों का नाश होता है, और धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ये इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।
-स्वामी शिवानन्द
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