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Akhand Jyoti
Year 1993
Version 1
अपनों से अपनी...
अपनों से अपनी बात-२, लीला पुरुष के सहचरों- अनुगामियों से एक भाव भरा अनुरोध
February 1993
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Page Titles
आदर्शों का अभिवर्द्धन ही सेवा-साधना
अनासक्त कौन?
प्रत्यक्ष से परे एक परोक्ष जगत् का अस्तित्व
तन्मयता-तल्लीनता की उच्चस्तरीय उपलब्धियाँ
निर्भयता अपराजेय है
उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ती मानव जाति
सूक्ष्मलोक से जुड़ी अलौकिक स्तर की सिद्धियाँ
संत, राष्ट्र की आत्मा
देवात्मा हिमालय की पवित्रता अक्षुण्ण बनी रहे
बलिवैश्व की पाँच आहुतियों से जुड़े पंचशील
देहरूपी देवालय की पूजा उपासना सोहम् साधना द्वारा
अणु-अणु में समायी है, उस बाजीगर की सत्ता
सही मायनों का अनुसंधान
भवितव्यता टल नहीं सकेगी
क्यों बढ़ता है अन्तर्राष्ट्रीय तनाव- कैसे आयेगी शान्ति?
सत्यं, शिवं, सुन्दरम् की व्यावहारिक विवेचना
आवेश ग्रस्तता- एक प्रकार की व्याधि
'छाया पुरुष' महज दिवा स्वप्न नहीं- एक सत्य
इक्कीसवीं सदी का आधार स्तम्भ बनेगा- आध्यात्मिक अर्थशास्त्र
महाकवि माघ का प्राणोत्सर्ग
बुद्धिमत्ता के रूप में वज्र-मूर्खता
वैदिक संस्कृति ही विश्व संस्कृति
सूक्ष्म शरीर को सक्रिय बनाने वाली त्रिविध मुद्राएँ
सचेतन तीर्थ- सिद्धपीठ
विरक्ति- विवेक पर आधारित हो
शिष्यों का संकल्प
युगपुरुष पूज्य गुरुदेव पं( श्रीराम शर्मा आचार्य
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
'अश्वमेध' जो ब्रह्मवर्चस का जागरण कर रहे हैं
अपनों से अपनी बात-१, कैसे होंगे विश्व मानवता के लिए आने वाले कुछ वर्ष?
अपनों से अपनी बात-२, लीला पुरुष के सहचरों- अनुगामियों से एक भाव भरा अनुरोध
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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