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Akhand Jyoti
Year 1989
Version 1
आस्तिकता की सही...
आस्तिकता की सही परिभाषा
October 1989
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तपस्वी का वैराग्य
हँसती-मुस्कराती-आकृति-प्रकृति
भविष्य इस प्रकार उभरेगा
सौन्दर्य का सच्चा मापदण्ड
यह कुचक्र देर तक टिकेगा नहीं
प्रत्यक्ष पराक्रमों के मूल में सक्रिय दैवी प्रेरणा
न कोई बुरा है न पापी
राजा जनक विदेह क्यों कहलाए
प्रतिभाएँ यह तथ्य समझें, समझाएँ
भाव संवेदनाओं से भरा-पूरा भक्तियोग
अनीति का साम्राज्य देर तक नहीं टिकता
संत तिरुवल्लुवर के अमृत वचन
मानवी गरिमा के साथ जुड़ी दिव्य संवेदना
व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान
आ रहा है अध्यात्म प्रधान युग
ज्योति अवतरण की उच्चस्तरीय साधना
अध्यात्म यथाथर्वादी है, विज्ञानसम्मत भी
आस्तिकता की सही परिभाषा
मुधु संचय
विचारों में निहित रचनात्मक शक्ति
सूझ-बूझ ने खोला समृद्धि का द्वार
नींव का पत्थर बनँ मैं
मनःस्थिति को सुव्यवस्थित बनायें
परोक्ष से उठता क्रूरता का उन्माद
निंदा से विचलित क्यों हों?
चिंता की चिता में जलते मन का उपचार
प्रसन्नतः एक सुलझी हुई मनःस्थिति
प्रकृति प्रेरणा का भयावह व्यतिरेक
चिन्तन की अनगढ़ा ही दरिद्रता है
स्वस्थ मनोरंजनः मनुष्य की एक नैसगिर्क आवश्यकता
नारी अबला नहीं परम शक्तिशाली है
अपनों से अपनी बात- परिजनों को एक जुट होने का आह्वान
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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