जीवन के ये पल नयी साधना के स्वरों को लेकर हम सबके द्वार -देहरी तक आये हैं । इन स्वरों में रचनात्मक जीवन का मधुर गीत पिरोया है । चेतो! चेतो!! जागो! जागो!! की मीठी धुन को हम सभी इस नव वर्ष के नए विहान पर सुन सकते हैं । बहुत सोये, अब और नहीं! बहुत खोया अब और नहीं!! की प्रभाती इक्कीसवीं सदी की प्रभात बेला में गायी जा रही है । प्रकृति, परमेश्वर एवं सदगुरु की सम्मिलित चेतना से उपजे इन साधना स्वरों की अनसुनी न करें ।
ध्यान रहे, साधना से ही जीवन संवरता है । रचनात्मकता की कोपलें फूटती हैं, नव सृजन के अंकुर निकलते हैं । साधना के अभाव में जीवन यूँ ही बंटता, बिखरता और बरबाद होता रहता है । बरबादी की इस टीस को हममें से हर एक कहीं न कहीं अपनी अन्तर्चेतना में अनुभव करता है । जिन्दगी की बरबादी का दर्द हम सभी को सालता है । रचनात्मक जीवन की साधना में ही इसका समाधान है ।
किन्तु सावधान! यह साधना कुछ इने-गिने कर्मकाण्डों तक सीमित नहीं है । किसी तरह की पूजा-पत्री, पाठ, होम से इसे पूरा नहीं किया जा सकता । यह तो सजगता, सक्रियता एवं शुचिता से