हमारे धर्म और संस्कृति में जो स्थान विद्या-व्रत, ब्रह्मचर्य, ब्राह्माण्त्व, गऊ, देव, मन्दिर, गंगा, गायत्री एवं गीता-रामायण आदि धर्म-ग्रन्थ-इन सबको दिया गया है वैसा ही वृक्षों को भी महत्व दिया गया है। यह महत्व उन्हें उक्के द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों को देखते हुए ही दिया गया है । शास्त्रकार ने लिखा हे-
रविश्चन्द्वो द्या वृक्षा नद्योगावश्च सज्जनाः ।
ऐते परोपकाराय युगे दैवेन निर्मिताः ॥
परम पिता परमात्मा ने सूर्य, चन्द्रमा, बादल, वृक्ष, नदियाँ, गायें और सज्जन पुरुषों का आविर्भाव संसार में परोपकार के लिए किया है। सब सदैव परोपकार में ही रत रहते हैं ।
उपरोक्त उक्ति में ऋषि ने अन्य परोपकारियों में वृक्ष को भी समान दर्जा दिया है और यह स्पष्ट किया है कि एक सज्जन पुरुष और वृक्ष में गुणों की दृष्टि से कोई भेद नहीं है ।