वैभव नहीं महानता का वरण करें

संसार भर में जितना श्रेय और सम्मान प्रतिभाशाली व्यक्तियों को, बुद्धिजीवी विचारकों और वैज्ञानिकों को प्राप्त होता है, उसका एक अंश भी धनी व्यक्तियों को नहीं मिल पाता । फिर भी धनवान व्यक्ति का अपने निकटवर्ती क्षेत्र में प्रभाव और रोब-दाब रहता है । जिस किसी भी युग में धन के कारण व्यक्ति को प्रतिष्ठा दी जाने लगी होगी, तब यह सोचकर उसे सम्मानित नहीं किया गया होगा कि धनवान होना अपने आप में कोई बड़ी बात है । वरन उस समय धन को व्यक्ति के श्रमशील पुरुषार्थी और परिश्रमी होने का मापदंड समझा गया था । आज भी यही स्थिति हे । हैनरी फोर्ड, रॉकफेलर, ओनासिस, टाटा जैसे उद्योगपतियों को संसार आज भी इसलिए आदर के साथ पुकारता है कि उन्होंने परिश्रम व पुरुषार्थ से इतनी धन-संपदा कमाई । अन्यथा उनके वंशजों ने उनकी छोड़ी गई संपत्ति को और भी बढ़ाया ही होगा । परंतु जितना सम्मान और जितनी ख्याति उन उद्योगों के संस्थापकों को प्राप्त है, उतनी उनके वंशजों को शायद ही मिली हो । कारण, उन्हें एक नई व्यवस्था की स्थापना करनी पड़ी और उसके लिए मौलिक सूझ-बूझ से परिश्रम करना पड़ा । धन संपन्न व्यक्तियों को सम्मानित करने की परंपरा भी इसीलिए आरंभ हुई प्रतीत होती है

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