वर्तमान हिन्दू समाज उस पंख विहीन पक्षी की तरह अधोगति में पड़ा हुआ है जिसे लोहे के पिंजड़े की कैद दे दी जाती है । पालने वाला यह समझता है कि हम उस जीव के साथ दया और सहृदयता का व्यवहार कर रहे हैं, पर पक्षी की स्वतन्त्रता और विकास की स्वच्छन्द गति पर अंकुश लग जाने से उसे जो कष्ट मिलता है उसे कोई नहीं जानता । भारतीय समाज भी रूढ़िवादी कुण्ठाओं, मूढ परम्पराओं, जातीय कुरीतियों की लौह सलाखाओं में बन्द कर दिया गया है । उसके पंख कट गये हैं । कैद है वह । उठना चाहता है पर उसकी दशा तोते से भी बदतर हो गई हैं । पिंजड़े में बन्द तोता अवसर मिलने पर उड़ भी जाता है पर इसे तो उसे आवरण से ही मोह हो गया है । यह स्थिति हमारी सुख-शान्ति और समृद्धि का निरन्तर शोषण करती जा रही है फिर भी हम पतनोन्मुख परिस्थितियों को बदलने के लिए समुद्यत नहीं हैं ।
अन्ध-विश्वास, पर्दा, दहेज जाति-भेद की तरह बाल-विवाह भी हमारी नैतिक और मानसिक दुर्बालता का ही लक्षण है । जहाँ अन्य अविवेकपूर्ण कुरीतियाँ हिन्दु-जाति की प्रगति में बाधक हैं, वहाँ उसकी आन्तरिक दशा को बर्बाद करने में बाल-विवाह भी कम उत्तरदायी न्हीं