प्राचीन प्रणाली के संयुक्त परिवार एक दृष्टि से वर्तमान समय की सहयोग समितियों के प्रतीक थे ।। जैसे सौ व्यक्तियों का भोजन एक भोजनालय में बनाए जाने और सौ का अलग- अलग बनाने में परिश्रम तथा व्यय के परिमाण में बहुत भारी अंतर पड़ जाता है, वही अंतर दस- बीस व्यक्तियों के एक सम्मिलित परिवार और एक- एक पति- पत्नी के व्यक्तिगत परिवारों में है ।। इससे कोई इनकार कर ही नहीं सकता कि परिवार के साथ- साथ भाई- बंधु अपने बाल- बच्चों सहित एक परिवार में रहें, तो उनको कम खर्च में ऐसी सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं, जो अकेले में कभी संभव नहीं हो सकती ।। इसमें यदि कभी बाधा पड़ती है तो उसका कारण लोगों की अनुचित या दूषित मनोवृत्ति ही होती है ।। यदि इसके सुधार का प्रयत्न कर लिया जाए तो सम्मिलित परिवार जीवन को सुखी बनाने में बड़ी दूर तक सहायक बन सकता है ।।