नारी की गरिमा समझें और सम्मान दें
आज नारी को हमने घर की बन्दिनी, परदे की प्रतिमा और पैर की जूती बनाकर रख छोड़ा है और फिर भी जो मूक पशु की तरह सारा कष्ट, सारा क्लेष विष के घूँट की तरह पीकर स्नेह का अमृत ही देती है, उस नारी के सही स्वरूप तथा महत्व पर निष्पक्ष होकर विचार किया जाए तो अपनी ही आत्मा अपने धिक्कार को अब और अधिक नहीं सुनना चाहती ।। मानवता के नाते, सह धर्मिणी होने के नाते, राष्ट्र व समाज की उन्नति के नाते उसे उसका उचित स्थान दिया ही जाना चाहिए ।। अधिक दिनों उसके अस्तित्व, व्यक्तित्व तथा अधिकारों का शोषण राष्ट्र को ऐसे गर्त में गिरा सकता है जिससे निकल सकना कठिन हो जाएगा ।। अत : कल्याण तथा बुद्धिमत्ता इसी में है कि समय रहते चेत उठा जाए और अपनी इस भूल को सुधार ही लिया जाए ।।
नारी का सबसे बड़ा महत्व उसके जननी पद में निहित है ।। यदि जननी न होती तो कहाँ से सृष्टि का संपादन होता और कहाँ से समाज तथा राष्ट्रों की रचना होती ।। यदि माँ न हो तो वह कौन- सी शक्ति होती जो संसार से अनीति एवं अत्याचार मिटाने के लिए शूरमाओं को धरती पर उतारती ।। यदि माता न होती तो यह बड़े- बड़े, वैज्ञानिक,प्रकांड पंडित, अप्रतिम साहित्यकार, दार्शनिक, मनीषी, महात्मा एवं महापुरुष किसकी गोद में खेल- खेलकर धरती पर पदार्पण करते ।। नारी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की जननी ही नहीं, वह जगजननी है ।। उसका समुचित सम्मान न करना अपराध है, पाप तथा अमनुष्यता है ।। ……