मानव प्रगति एवं पर्यावरण

औद्योगिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एवं राजनैतिक क्रांतियो का दौर विगत दो शताब्दियों में चला है । विगत डेढ़ सौ वर्षो को विशेष रूप से मानवी प्रगति का दौर कहा जाता है । मानव चाँद तक पहुँच गया एवं सैटेलाइट्स के जंगल उसने ब्रह्मांड में पृथ्वी की कक्षा मे खडे कर दिए हैं । उसी तादाद में उसने औद्योगीकरण-शहरीकरण के बढ़ते अभिशाप के चलते सारा वायुमंडल प्रदूषित कर दिया है । वायुमंडल में कार्बनमोनो ऑक्साइड-नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड जैसे विषैले घटक बढते चले जा रहे हैं । श्वास रोग भी इसी परिमाण में बढ रहे है । समृद्धि-सुख साधन की होड़ में सबसे बहुमूल्य घटक पानी तक को ऐसा प्रदूषित कर दिया गया है कि वह पीने योग्य अब रह नहीं गया । हमारी प्राय: सभी नदियाँ प्रदूषित हैं एवं हिमालय से ग्लेशियर के पिघलने से उनकी यात्रा कुछ ही आगे बढती है कि यह मानवी खिलवाड चालू हो जाती है । मात्र १०० मील के अन्दर वह पीने की पात्रता खो बैठता है । जगह-जगह मिनरल वाटर की बोतले बिकती दिखाई देती हैं, पर महँगी कीमत पर वे भी दूषित जल ही बाँट रही हैं । वर्षा भी अब प्रदूषण के कारण अम्लप्रधान होने लगी है । कभी पर्जन्य बरसता था,

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