नारी पुरुष की पूरक सत्ता है । वह मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत है उसके बिना पुरुष का जीवन अपूर्ण है । नारी ही उसे पूर्ण करती है । मनुष्य का जीवन अन्धकार युक्त होता है तो स्त्री उसमें रोशनी पैदा करती है । पुरुष का जीवन नीरस होता है तो नारी उसे सरस बना देती है । पुरुष के उजड़े हुए उपवन को नारी पल्लवित बनाती है ।
इसलिए शायद संसार का प्रथम मानव भी जोड़े के रूप में धरती पर अवतरित हुआ था । संसार की सभी पुराण कथाओं में इसका उल्लेख है । हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ मनुस्मृति में उल्लेख है-
द्विधा कृत्वाऽऽत्मनस्तेन देहमर्धेन पुरूषोऽभवत् ।
अर्धेन नारी तस्या स विराजमसृजत्प्रभु ।।
''उस हिरण्यगर्भ ने अपने शरीर के दो भाग किये । आधे से पुरुष और आधे से स्त्री का निर्माण हुआ ।''
इस तरह के कई आख्यान है जिनसे सिद्ध होता है कि पुरुष और नारी एक ही सत्ता के दो रूप है और परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं । फिर भी कर्त्तव्य, उत्तरदायित्व और त्याग के कारण पुरुष से नारी कहीं महान् है । वह जीवन यात्रा में पुरुष के साथ ही नहीं चलती वरन् उसे समय पड़ने पर शक्ति और प्रेरणा भी देती है । उसकी जीवन यात्रा