गन्दगी की घृणित असभ्यता

विलियम वैम्पायर नामक एक अंग्रेज पर्यटक भारतवर्ष आया, यहाँ उसने कई वर्ष बिताकर भारतीय अध्यात्म का गहन अध्ययन किया । हिन्दू धर्म की तात्विक गवेषणाओं से वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपनी पुस्तक में लिखा कि- ''यदि मुझसे कोई पूछे कि हिन्दू धर्म क्या है ? तो मैं यही कहूँगा कि वह मनुष्य का सच्चा स्वरूप है ।'' पर इसी वैम्पायर ने अपनी यात्रा के संस्मरणों में भारतीय लोगों के गंदा होने पर जो बड़ा कटु व्यंग्य किया है वह भी कम विचारणीय नहीं है । वैम्पायर लिखता है-"आप उस देश में कभी भटक नहीं सकते । अँधेरी रात में आप जंगल में रास्ता भूल गए हों, तो किसी उँचे स्थान पर खड़े हो जायें । चारों ओर को घूम-घूम कर हवा की सुगन्ध पहचानने का प्रयत्न करें फिर जिधर से दुर्गन्ध आती मालूम पड़ रही हो उधर को चल पड़े, मेरा विश्वास है आप बहुत जल्दी किसी गाँव में दाखिल हो जायेंगे ।'' हमारा पिछड़ापन- उपरोक्त कथन में संभव है कुछ अतिशयोक्ति हो, पर वस्तुस्थिति बहुत कुछ ऐसी ही है । हमारे देश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भी इस बात को माना है । महात्मा गाँधीजी कहते थे- "मुझे अपने देशवासियों की गंदगी बहुत कष्ट देती है,

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