बच्चों में ऐसी भावना भरनी चाहिए कि वह अपने से बड़ों का सम्मान करें उनसे शिष्टाचार के साथ बात कर सकें । इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि परिवार में भी इसी के अनुकूल वातावरण बनाया जाए, क्योंकि बच्चा बंदर की तरह नकलची होता है, जैसा स्वयं हम व्यवहार करते हैं उसी का अनुकरण बच्चा भी करता है । इसलिए उसकी भावनाओं को उभारने के लिए उसी प्रकार के वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिसकी हम बच्चे से अपेक्षा करते हैं । हमारी भारतीय परंपरा अपने से बड़ों का चरण स्पर्श द्वारा अभिवादन करने ही रही है यह भावना बच्चों में भी भरनी चाहिए ।
इसके लिए यह आवश्यक है कि बड़े लोग भी बच्चों या अपने से छोटे-बड़ों से वैसा ही व्यवहार करें जैसी वे बच्चों से अपेक्षा करते हैं । बड़ों को भी बच्चों के साथ शिष्टाचार के साथ पेश आना चाहिए । व्यवहार में नम्रताशीलता-सज्जनता का पुट रहना आवश्यक है । बच्चों का अपमान न किया जाए, उनके स्वाभिमान को ठेस न पहुँचाई जाए । अबोध बालक से भी 'आप' का संबोधन किया जाए यदि 'आप' नहीं तो कम से कम 'तुम' तो कहा ही जाए । 'तू' के शब्द को असभ्य माना जाए । कन्या या पुत्र में कोई अंतर न समझा जाए, दोनों के साथ एक-सा व्यवहार किया जाए ।
बच्चों में धार्मिक भावनाओं का समावेश किया जाना चाहिए ताकि वे धर्म के मूल्यों को समझ सकें उनमें ईश्वर के प्रति श्रद्धा व विश्वास बढ़ सके इससे ये बडे होकर अनीतिगामी न हो सकेंगे ।