भारतीय संस्कृति में सुसंतति के निर्माण को बहुत महत्त्व दिया गया है ।। वह उचित भी है ।। हर व्यक्ति समय की गति के साथ बूढ़ा- दुर्बल होता है तथा शरीर त्याग देता है ।। उसकी पूर्ति ठीक प्रकार न हो तो समाज का संतुलन बिगड़ जाए ।। उसका अस्तित्व ही नष्ट होने लगे ।। इसलिए समाज के विकास के लिए उसके उत्तरदायित्वों को सँभालने के लिए श्रेष्ठ, सुयोग्य, समुन्नत, समर्थ नई पीढ़ी का निर्माण आवश्यक कहा गया एवं अति महत्त्वपूर्ण माना गया ।। उसके लिए लोगों को प्रेरित- प्रोत्साहित करने की व्यवस्था बनाई गई ।। सुसंतति का निर्माण करने वालों को पुण्य का भागीदार तथा कुल की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला माना गया ।।