बच्चों के लिए खान -पान की, रहन सहन की और क्रीड़ा -विनोद की साधन- सामग्री पर्याप्त मात्रा में जुटा देने के बाद अभिभावक प्राय: यह समझ लेते है कि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। कई माता-पिता तो स्नेह और ममत्व की कसौटी ही यह मानते है कि वे अपनी संतान के लिए कितने मुक्ताहस्त से धन खर्च कर सकते है। बच्चों को किसी प्रकार का आभाव महसूस न होने देना माता -पिता का कर्तव्य है यह तो ठीक है।