‘‘देश
में सब कुछ है, बस व्यक्ति नहीं। कहने को तो लोग बहुत हैं, जनसंख्या भी
दिनों- दिन बढ़ रही है, पर खरे- परखे उच्चस्तरीय व्यक्ति नहीं हैं। आज के
हिन्दुस्तान में न तो गांधी है, न सुभाष, न लोकमान्य तिलक है और न स्वामी
विवेकानंद। पर हम गढ़ेंगे और यह सब हम इस शरीर को छोड़ने के बाद करेंगे।
फिर बोले- चिन्ता की बात नहीं, तुम लोगों से करायेंगे। तुम्हें कुछ नहीं
करना है। मैं तुम लोगों के पास नई पीढ़ी के बच्चे लाऊँगा। तुम उनके पास
बैठना, उनसे अच्छी- अच्छी बातें करना, उन्हें साधनाएँ कराना, बाकी पीछे मैं
सब कर दूँगा। स्थूल क्रियाकलापों को उत्कृष्ट बनाने की जिम्मेदारी
तुम्हारी और सूक्ष्म में परिवर्तन, प्रत्यावर्तन करने की जिम्मेदारी
हमारी।’’