आर्थिक स्वालम्बन

किसी भी देश की खुशहाली उस देश के स्वावलम्बी नागरिकों पर टिकी होती हैं । राष्ट्र के नवनिर्माण हेतु इस युग के सर्वोपरि महादैत्य ''अज्ञान'' (अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान न होना) से प्रभावी ढंग से जूझ सकने में समर्थ राष्ट्रव्यापी प्रचारात्मक अभियान (विचारक्रान्ति अभियान) को कई दशाब्दियों से अपनी क्षेत्रीय संगठनात्मक इकाइयों के माध्यम से व्यवस्थित रूप में गतिशील कर देने के उपरान्त अब मिशन ने ''अभाव'' रूपी महादैत्य से जूझने के लिए रचनात्मक अभियान को सुनियोजित व व्यवस्थित रूप देकर विगत कई वर्षों से उसका व्यापक तंत्र खड़ा करने की पहल की है । इसका उद्देश्य ऐसी विधि व्यवस्थाओं को खड़ा करना है, जिसमें बेरोजगारी व गरीबी से ग्रस्त बहुसंख्यक समाज (मुट्ठीभर लोग नहीं) अपने अभाव को मिटाने व स्वावलम्बी बनने में समर्थ हो सके ।' वर्तमान अर्थव्यवस्था में अमीर अधिक अमीर तथा गरीब अधिक गरीब होता चला गया है । भोगवादी अन्धी प्रगति की दौड़ में जहाँ मुट्ठीभर समर्थ व सबल लोगों ने राजकीय योजनाओं व वित्तीय संस्थाओं का अनाप-शनाप लाभ उठाकर अधिकाधिक सम्पन्न बनने का अवसर प्राप्त किया है, वहीं इस मुट्ठीभर वर्ग ने धन कुबेर बनने की लिप्सा में असंख्यों के लिए समस्याएँ पैदा की है । प्रदूषण, विकिरण, प्रकृति का असंतुलन, दरिद्रता, पिछड़ापन, गरीब-अमीर के

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