वेदान्त-दर्शन भाग-1

भारतीय चिन्तन धारा में जिन दर्शनों की परिगणना विद्यमान हैं, उनमें शीर्ष स्थानीय दर्शन कौन सा है? ऐसी जिज्ञासा होने पर एक ही नाम उभरता है, वह है-वेदान्त। यह भारतीय दर्शन के मंदिर का जगमगाता स्वर्णकलश है-दर्शनाकाश का देदीप्यमान सूर्य है। वेदान्त की विषय वस्तु, इसके उद्देश्य, साहित्य और आचार्य परम्परा आदि पर गहन चिन्तन करें, इससे पूर्व आइये, वेदान्त शब्द का अर्थ समझें।

वेदान्त का अर्थ-वेदान्त का अर्थ है-वेदान्त का अर्थ है- वेद का अन्त या सिद्धान्त। तात्पर्य यह है-'वह शास्त्र जिसके लिए उपनिषद् ही प्रमाण है। वेदान्त में जितनी बातों का उल्लेख है, उन सब का मूल उपनिषद् है। इसलिए वेदान्त शास्त्र के वे ही सिधान्त माननीय हैं, जिनके साधक उपनिषद् के वाक्य हैं। इन्हीं उपनिषदों को आधार बनाकर बादरायण मुनि ने ब्रह्मसुत्रो की रचना की।' इन सूत्रों का मूल उपनिषदों में है। जैसा पूर्व में कहा गया है-उपनिषद् में सभी दर्शनों के मूल सिद्धान्त हैं

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