ब्रह्मविद्या-खन्ड-2


उपनिषद् में उप और नि उपसर्ग हैं । सद् धातु गति के अर्थ में प्रयुक्त होती है। गति शब्द का उपयोग ज्ञान, गमन और प्राप्ति इन तीन संदर्भो में होता है । यहाँ प्राप्ति अर्थ अधिक उपयुक्त है । उप सामीप्येन, नि-नितरां, प्राम्नुवन्ति परं ब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद अर्थात् जिस विद्या के द्वारा परब्रह्म का सामीप्य एवं तादात्म्य प्राप्त किया जाता है, वह उपनिषद् है ।

२०. निर्वाणोपनिषद् ,२१. पंच ब्रह्मोपनिषद् ,२२. परब्रह्मोपनिषद् ,
२३ .परमहंस परिव्राजकोपनिषद् ,२४ . परमहंसोपनिषद् ,
२५ . पैङ्गलोपनिषद् ,२६ . ब्रह्मबिन्दूपनिषद् ,२७ . ब्रह्मविद्योपनिषद् ,
२८ . ब्रह्मोपनिषद् ,२९ . भिक्षुकोपनिषद् ,३० . मण्डलब्राह्मणोपनिषद् ,
३१ . महावाक्योपनिषद् ,३२ . मैत्रेय्युपनिषद् ,३३ . याज्ञवल्क्योपनिषद् ,
३४ . योगतत्त्वोपनिषद् ,३५ . वज्रसूचिकोपनिषद् ,३६ . शाट्यायनीयोपनिषद् 
,३७ . शाण्डिल्योपनिषद् ,

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