जर्मन प्राणिशास्त्रवेत्ता हेकल लगभग एक शताब्दी पूर्व इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि सृष्टि क्रम विविध इकाइयों के सहयोग-संतुलन पर चल रहा है । जिस प्रकार शरीर के कलपुर्जे कोशिकाएँ और ऊतक मिल-जुलकर जीवन की गतिविधियों का सचालन करते हैं, उसी प्रकार संसार के विविध घटक एक-दूसरे के पूरक बनकर, सृष्टि-संतुलन को यथाक्रम बनाये हुए हैं । यह अन्यान्योश्रय व्यवस्था सृष्टिकर्त्ता ने बहुत ही समझ-सोचकर बनाई है और आशा रखी है कि सामान्य उपयोग के समय मामूली हेर-फेरी के अतिरिक्त किसी के द्वारा इसमें भारी उलट-पुलट नहीं की जाएगी । सृष्टा की यह इच्छा और व्यवस्था जब तक बनी रहेगी, तब तक इस धरती का अद्भुत सौंदर्य और मनोरम क्रियाकलाप भी जारी रहेगा ।
उपरोक्त प्रतिपादन को हेकल ने इकॉलोजी नाम दिया है । तब से लेकर अब तक इस ओर विज्ञानवेत्ताओं की रुचि घटी नहीं, वरन् बढ़ी ही है और शोध क्षेत्र के इस नये पक्ष को एक स्वतंत्र शास्त्र ही मान लिया गया है । अब सृष्टि-संतुलन विझान को इकॉलोजी शब्द के अंतर्गत लिया जाता है ।
इकॉलोजी शोध प्रयासों द्वारा इस निष्कर्ष पर अधिकाधिक मजबूती के साथ पहुँचा जा रहा है कि प्रकृति की हर वस्तु एक-दूसरे के साथ घनिष्ठतापूर्वक जुड़ी हुई है । ऑक्सीजन, पानी, रोशनी, पेड-पौधे, कीटाणु,