सिद्धिदात्री वाक्-साधना

जीभ सबके मुख में है और बोलते भी सभी हैं पर बोलना किसी-किसी को ही आता है । वाणी का सही उपयोग कोई-कोई ही कर पाते हैं । तत्त्व-वेत्ताओ ने शब्द को शिव और वाणी को शक्ति कहा है । इनका अनुग्रह जिस पर हो, उसे अमृतत्व उपभोक्ता ही कहना चाहिए ।

शब्द-कंठ और जिह्वा का उच्चारण भर ही नहीं है-और न जीभ कैंची की तरह दिनभर चलाने एवं अनर्गल बकवास करने के लिए बनाई गई है । इसमे अजस्र शक्ति का भंडार भरा पडा है । यह उच्चारण अपने को तथा दूसरों को कितना प्रभावित करता है, इसका मर्म जो समझ लेते हैं, वे एक-एक शब्द को नाप-तोल कर बोलते हैं और अपनी निश्छलता एवं श्रद्धा का समावेश करके वाणी को इतना प्रभावशाली बना देते है कि सुनने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रहता ।

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