स्वर से ‘‘अक्षर’’ की अनुभूति

‘‘स्वर साधना द्वारा योगी अपने को तल्लीन करते हैं’’ और एकाग्र की हुई, मनःशक्ति को विद्याध्ययन से लेकर किसी भी व्यवसाय में लगाकर चमत्कारिक सफलतायें प्राप्त की जा सकती हैं, इसलिये यह मानना पड़ेगा कि संगीत दो वर्ष के बच्चे से लेकर विद्यार्थी, व्यवसायी, किसान, मजदूर, स्त्री-पुरुष सबको उपयोगी ही नहीं आवश्यक भी है। उससे मनुष्य की क्रिया शक्ति बढ़ती और आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है। यह बात ऋषि-मनीषियों ने बहुत पहले अनुभव की थी और कहा था— ‘‘अभि स्वरन्ति वहवो मनीषियो राजा नमस्य भुवनस्य निंसते ।’’ —ऋग्वेद 9।85।3 अर्थात्—अनेक मनीषी विश्व के महाराजाधिराज भगवान् की ओर संगीतमय स्वर लगाते हैं और उसी के द्वारा उसे प्राप्त करते हैं।

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