कुण्डलिनि महाशक्ति और उसकी संसिद्धि

भारतीय योग-साधन का मुख्य उद्देश्य जीवनमुक्त स्थिति को प्राप्त करना है । अभी तक प्राणियों के विकास को देखते हुए सबसे ऊँची श्रेणी मनुष्य की है, क्योंकि उसको विवेक और ज्ञान के रूप में ऐसी शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनसे वह जितना चाहे ऊँचा उठ सकता है और कैसा भी कठिन कार्य हो, उसे अपनी बहिरंग शक्ति से पूरा कर सकता है । संसार के अधिकांश मनुष्य जीवन के बाह्य पक्ष को ही साधने का प्रयत्न करते हैं और प्रत्येक कार्य को संपन्न करने के लिए धनबल, शरीरबल तथा बुद्धिबल का प्रयोग करने के दो मार्ग को ही आवश्यक मानते हैं । इन तीनों बलों के अतिरिक्त संसार में महान कार्यों को करने के लिए जिस आत्मबल की आवश्यकता होती है, उसके विषय में शायद ही कोई कुछ जानता हो, पर वास्तविकता यही है कि संसार में आत्मबल ही सर्वोपरि है और उसके सामने कोई और "बल" कुछ विशेष महत्त्व नहीं रखता तथा न ही इस बल के आगे टिक ही सकता है । इस बल को अर्जित करने के लिए योग-साधन द्वारा आत्मोत्कर्ष का पथ अपनाना पड़ता है । जो लोग अपने जीवन ध्येय को प्राप्त करने के लिए अपनी निर्बलताओं अथवा त्रुटियों को समझकर उनको दूर करने के लिए योग-मार्ग का आश्रय ग्रहण करते हैं वे धीरे-धीरे अपनी निर्बलता को सबलता में बदल देते हैं और न केवल सांसारिक विषयों में ही अपने मनोरथों को सफल करते, वरन आध्यात्मिक क्षेत्र में भी ऊँचे उठते हैं । वे स्वयं अपना कल्याण साधन करने के साथ-साथ अन्य सैकड़ों व्यक्तियों के लिए उद्धार का मार्ग प्राप्त करने के योग्य बना देते हैं ।

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