प्रत्यक्षवाद की कसौटी पर सही न उतरने के कारण विज्ञान ने आत्मा की-परमात्मा की, कर्मफल की सत्ता को नकारा है ।यदि उसकी यह बात मान ली जाय तो आदर्शवादिता, नैतिकता,सामाजिकता का कोई ठोस आधार शेष नहीं रह जाता, स्वार्थ सिद्धि ही सर्वोपरि बुद्धिमत्ता ठहरती है । ऐसी स्थिति में सर्वत्र अराजकता एवं उद्धत् अनाचार का ही बोलबाला रहेगा । अध्याम को नकारने की प्रतिक्रिया मनुष्य समाज को प्रेत-पिशाचों का जमघट बनाकर ही छोडे़गी।
इस विषम परिस्थिति में केवल श्रद्धा के बल पर सम्भव नहीं है । उसे विज्ञान और प्रत्यक्षवाद की कसौटी पर भी खरा सिद्ध करना होगा । इसी आधार पर प्रबुद्ध वर्ग को वे सनातन सत्य स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जा सकेगा, जिनकी आवश्यकता मनुष्य के विकास के लिए अनिवार्य रूप है। शांन्तिकुञ्ज के ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ने यही लक्ष्य हाथ में लिया है कि 'बुद्धिवाद को विज्ञान की कसौटी पर कसकर, अध्यात्मवाद की गरिमा स्वीकार करने के लिए प्रत्यक्षवाद को सहमत किया जाय।'
परम पूज्य गुरुदेव