आत्मिक प्रगति का एक चरण योग और दूसरा तप है । योग भावात्मक और तप क्रियापरक है । एक को सूक्ष्म दूसरे को स्थूल कह सकते है । मानवी सत्ता चेतन आत्मा और जड़ शरीर के समन्वय से बनी है । उन दोनों को ही परिष्कृत करना पड़ता है । भावशुद्धि और क्रियाशुद्धि दोनों आवश्यक है । भावशुद्धि को योग और क्रिया शुद्धि को तय कहा जाता है।