गायत्री सद्बुद्धि का मन्त्र है। इस महामन्त्र में कुछ ऐसी विलक्षण शक्ति
है कि उपासना करने वाले के मस्तिष्क और हृदय पर बहुत जल्दी आश्चर्यजनक
प्रभाव परिलक्षित होता है। मनुष्य के मनःक्षेत्र में समाये हुए काम, क्रोध,
लोभ, मोह, मद, मत्सर, चिन्ता, भय, शोक, ईर्ष्या, द्वेष, पाप, कुविचार आदि
चाहे कितनी ही गहरी जड़ जमाये बैठे हों, मन में तुरन्त ही हलचल आरम्भ होती
है और उनका उखड़ना, घटना तथा मिटना प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने लगता है।
संसार में समस्त दुःखों की जननी कुबुद्धि ही तो है। जितने भी दुःखी मनुष्य
इस विश्व में दीख पड़ते हैं, उनके दुःखों का एक मात्र कारण उनके आज के अथवा
भूतकाल के कुविचार ही हैं। परमात्मा का युवराज मनुष्य दुःख के निमित्त
नहीं अपने पिता के इस पुण्य उपवन-संसार में आनंद की क्रीड़ा करने के लिए
आता है। इस ‘स्वर्गादपि गरीयसी’ धरती माता पर वस्तुतः दुःख का अस्तित्व
नहीं है। कष्टों का कारण तो केवल ‘कुबुद्धि’ है। यही दुष्ट हमें आनन्द से
वंचित करके नाना प्रकार के क्लेशों, भयों, एवं शोक सन्तापों में फंसा देती
है। जब तक यह कुबुद्धि मन में रहती है तब तक कितनी ही सुख सामग्री प्राप्त
होने पर भी चैन