अज्ञानता के कारण मानव जीवन दुःखों से भरा रहता है ।। यदि ज्ञान हो तो अभावों में भी प्रसन्न रहा जा सकता है ।। युग द्रष्टा पूज्य गुरुदेव ने दिव्य दृष्टि से समझ लिया था कि सभी दुःखों का मूल कारण अज्ञान है ।। इसी अज्ञान को दूर करने हेतु उन्होंने ज्ञानयज्ञ की योजना चलाई ।। ज्ञानयज्ञ के दो माध्यम हैं- सत्संग और स्वाध्याय ।। ग्रंथ प्रकाशन की व्यवस्था आसान एवं सर्वसुलभ होने से अब स्वाध्याय ही बेहतर साधन हो सकता है ।। दुश्चिंतन को मिटाने वाले, सद्साहित्य की आवश्यकता की पूर्ति पूज्यवर ने युग साहित्य का सृजन करके की ।। युग साहित्य को जन- जन तक पहुँचाने के लिए तरह- तरह के प्रयोग किए जिनमें स्वाध्याय मंडलों की स्थापना को पूज्यवर ने कल्पवृक्ष की संज्ञा दी ।। इसके माध्यम से युग निर्माण मिशन के सभी कार्यक्रम स्वल्प साधनों से पूरा होने की योजना बनाई ।। स्वाध्याय मंडल की स्थापना पाँच प्रारंभिक सदस्यों द्वारा स्वाध्याय से प्रारंभ होती है, जो तीस सदस्यों द्वारा स्वाध्याय तक पहुँच जाती है ।। तीस सदस्यों का यह स्वाध्याय मंडल शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ आदि भवनों वाले प्रज्ञा संस्थानों के समतुल्य मिशन की गतिविधियों को चलाते हैं ।। स्वाध्याय मंडल के पास चल- अचल संपत्ति न होने