आस्तिकता की उपयोगिता और आवश्यकता


जीव क्या है? चेतना के विशाल सागर की एक छोटी सी बूंद अथवा लहर। हर शरीर में थोड़ा आकाश भरा होता है, उसका विस्तार सीमित है उसे नापा और जाना जा सकता है, पर वह अलग दीखते हुए भी ब्रह्माण्ड व्यापी आकाश का ही एक घटक है। उसका अपना अलग से कोई अस्तित्व नहीं। जब तक वह काया कलेश्वर में घिरा है तभी तक सीमित है, काया के नष्ट होते ही वह विशाल आकाश में जा मिलता है। फेफड़ों में भरी सांस सीमित है। पानी का बबूला स्वतंत्र है, फिर भी इनके सीमा बन्धन अवास्तविक है। फेफड़े में भरी वायु का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं। ब्रह्माण्ड व्यापी वायु ही परिस्थितिवश फेफड़ों की छोटी परिधि में कैद है। बन्धन न रहने पर वह व्यापक वायुतत्त्व से पृथक दृष्टिगोचर न होगी। पानी का बबूला हलचलें तो स्वतंत्र करता दीखता है पर हवा और पानी का छोटा-सा संयोग जिस क्षण भी झीना पड़ता है पानी पानी में और हवा हवा में जा मिलती है। बबूले का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

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