हम बदलें तो दुनिया बदले

आज युग परिवर्तन की चर्चा प्रायः सर्वत्र सुनने में आती है। संसार की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में बहुत अधिक अंतर पड़ जाने से उसका प्रभाव सामाजिक और धार्मिक परम्पराओं पर भी दिखाई दे रहा है। पर ये दोनों ही क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमे मनुष्य जल्दी से बदलाव करने को तैयार नहीं होता। खासकर हमारे देश में तो सामान्य सामाजिक प्रथाओं को भी धर्म का अंग मान लिया जाता है, जिसका परिणाम यह होता है की प्रत्यक्ष में हानिकारक परम्पराओं को त्यागने या बदलने में लोग आनाकानी करने लगते हैं। वे यह नहीं समझते कि सामाजिक प्रथाएं मुख्यतः देश काल पर आधारित होती हैं। उनके लिए हठ करना कि वे पूर्व समय से चली आयी हैं और आगे भी ज्यों की त्यों चलती रहनी चाहिए, नासमझी का परिचय देना है। इस पुस्तक में बतलाया गया है कि आज सामायिक परिस्थितियों के कारण युग परिवर्तन की जो विचारधारा जोर पकड़ रही है, उसको देखते हुए हमको अपनी अपनी सामाजिक प्रथाओं की अच्छी तरह जाँच करके उनमें समयानुकूल परिवर्तन करने चाहिए।

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