यम नियम

यम और नियम 'राज पथ' का अर्थ है 'आम- सड़क रास्ता जिस पर होकर हर कोई चल सके, जिस पर चलने में सब प्रकार की सरलता सुविधा हो, कोई विशेष कठिनाई सामने न आवे ।। राज योग का भी ऐसा ही तात्पर्य है। जिस योग की साधना हर कोई कर सके, सरलतापूर्वक उसमें प्रगति कर सके और सफल हो सके, यह राज योग है। हठ योग, कुंडलिनी योग, लय रोग, तंत्र योग, शक्ति रोग आदि उतने सरल नहीं हैं और न उनका अधिकार ही हर मनुष्य को है, उनके लिए विशेष तैयारी करनी पड़ती है और विशेष प्रकार का रहन- सहन बनाना होता है, पर राजयोग में ऐसी शर्तें नहीं है, क्योंकि वह मनुष्य मात्र के लिए रबी- पुरुष, गुही- विस्का, बाल- बृद्ध, शिक्षित सबके लिए समान रूप से उपयोगी और सरल है ।। योग का अर्थ है- मिलाना, जिस साधना द्वारा आस्था का परमात्मा से मिलना हो सकता है, उसे योग कहा जाता है ।। जीव की सबसे बड़ी सफलता यह है कि वह ईश्वर को प्राप्त कर ले, छोटे से बड़ा बनने के लिए अपूर्ण से पूर्ण होने के लिए बंद्ध से मुक्त होने के लिए वह अतीतकाल से प्रयत्न करता आ रहा है, चौरासी लक्ष्य योनियों को पर करता हुआ इतना आगे बढ़ आया है, यह यात्रा ईश्वर से मिलने के लिए है, बिछुड़ हुआ बछड़ा अपनी स्नेहमयी माता को ढूँढ़ रहा है, उसकी गोदी में बैठने के लिए छटपटा रहा है ।। उस स्वर्गीय मिलन की साधना योग है और इधर- उधर बढ़ने का सबसे साफ, सीधा और सरल जो रास्ता है, उसी का नाम है राजयोग है है ।। महर्षि पतंजलि ने इस योग को आठ भागों में विभाजित किया है ।। योग दर्शन के पाद २ का २९ वाँ सूत्र है- -

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