चान्द्रायण कल्प साधना

चांद्रायण साधना-उपचारा और अंतर्मुखी दर्शन आयुर्वेदीय कल्प का विवरण पढ़ते हैं तो ज्ञात होता है कि वमन, विरेचन, स्वेदन, नस्य, धूम्रपान, स्नेहन आदि के माध्यम से संचित मलों को बाहर निष्कासित किया जाता है । इस शरीर शुद्धि, परिशोधन के उपरांत शरीरगत मलिनताओं का भार हल्का होता है तथा नए उपचार की पृष्ठभूमि बनती है । यदि यह न किया गया तो उपचार का लाभ शरीर को मिलने के स्थान पर जलती आग में पड़े ईंधन की भस्म हाथ लगने के अतिरिक्त और कुछ पल्ले पड़ता नहीं । खाई पार कर ही पार जाया जा सकता है, अन्यथा सारे प्रयास-पुरुषार्थ इस खंदक को पार करने में लगी शक्ति के माध्यम से समाप्त हो जाएँगे । ठीक यही सिद्धांत आध्यात्मिक काया-कल्प पर भी लागू होता है । यह भी एक प्रकार की चेतनात्मक काया-कल्प चिकित्सा है । पंच तत्त्वों के काय-कलेवर में बैठा जीव जिन मलिनताओं से, संचित मलों से आच्छादित है, उनसे छुटकारा पाए बिना उसे नवीन चोला पहनाया नहीं जा सकता है । इस चिकित्सा उपचार में प्रारंभ में दो काम करने होते हैं । एक तो अपनी चिंताओं, समस्याओं, कठिनाइयों, आकांक्षाओं, अभिलाषाओं को विस्तारपूर्वक लिखकर मार्गदर्शक के सम्मुख प्रस्तुत कर देना होता है; ताकि उन्हीं बातों को बताने, पूछने का ताना-बाना न बुनते रहकर जो कहना है, वह एक बार में कह लिया जाए ।

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