शिखा और सूत्र की रहस्यमय विवेचना

आर्य जीवन, उद्देश्यमय जीवन है ।। जो लोग निरुद्देश्य जीते हैं, खाते, पीते, सोते, कमाते, स्त्री सेवन करते और मर जाते हैं, ऐसे लोगों जीवन पशु तुल्य है ।। हिन्दू धर्म ऐसे जीवन को घृणा की दृष्टि से देखता है और उपदेश करता है कि हर व्यक्ति सदा उपवीती होकर रहे ।। अर्थात उद्देश्यमय जीवन व्यतीत करे ।। यह सनातन विधि है -ईश्वरीय आज्ञा - आत्मा का स्वाभाविक कर्तव्य है ।। उद्देश्यमय जीवन में प्रवेश कराने के लिए ही यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है।

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