समस्त समस्याओं का समाधान - अध्यात्म

बुद्धिजीवियों का एक वर्ग बहुत समय से यह कहता आया है कि सभी प्रकार की विपत्तियाँ आर्थिक कठिनाइयों के कारण उत्पन्न होती है । यदि आर्थिक सुविधा हो, सम्पन्नता बढ़े तो फिर न तो किसी को पिछडा रहना पडेगा और न चोरी-बेईमानी अपनानी पडेगी । इस वर्ग के लोग उत्पादन बढ़ाने और खर्च में किफायत करने पर उतना जोर नहीं देते, जितना सम-वितरण पर । उनका कहना है कि जिनके पास पैसा है, उनसे लेकर सबको बाँट दिया जाय तो अमीरी बँट जायेगी । सब लोग संपत्तिवान बन जायेंगे फलत: अन्य समस्याओं के साथ नैतिक समस्याओं का भी समाधान हो जायेगा । इस वर्ग के लोग अपने को साम्यवादी कहते है ।

दूसरा वर्ग शिक्षा की कमी को पिछड़ेपन का कारण मानता है । वह शिक्षा की वृद्धि के साथ-साथ नैतिकता सहित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान का स्वप्न देखता है । तीसरा वर्ग शासन-पद्धति के संबंध में यह कहता है कि राज्य के हाथ में असीम शक्ति होती हे, वह कठोर दंड व्यवस्था के सहारे अपराधी तत्वों को रोक सकता है । राष्ट्रीय संपत्ति का मनमाना उपयोग करके वह समृद्धि और प्रगति का द्वार खोल सकता है । कई व्यक्ति देशों, वर्गों की संकीर्णता को पारस्परिक विग्रह का कारण मानते हैं और एकता के लिए इन सभी विभेदों को मिटाकर विश्व-राज्य, विश्व-धर्म विश्व परिवार का सृजन होने पर सुख-शांति के मार्ग की कठिनाइयाँ दूर होने की बात सोचते हैं ।

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