कर्मकाण्ड क्यों और कैसे

कर्मकांड क्यों और कैसे? जप एवं सिद्धि हमने अपने जीवन में ऐसे कई व्यक्ति देखे जिन्होंने कठोर तपस्या की थी फिर भी उनमें कोई सिद्धि दृष्टिगत नहीं होती जैसी कि परम पूज्य गुरुदेव ने प्राप्त की थी। अवसर पाकर एक दिन पूज्यवर से मैंने पूछ ही लिया ''हे गुरुदेव! आपने गायत्री मंत्र का जाप किया है। औरों ने भी उसी २४ अक्षर वाले गायत्री मंत्र का जाप किया है फिर उन लोगों को आप जैसी सिद्धि उपलब्ध क्यों नहीं हो सकी है?'' पूज्यवर ने मुस्कराकर कहा '' बेटा हमने इस गायत्री मंत्र का जप तो बाद मे किया है। पहले अपने बहिरंग एवं अंतरंग का परिष्कार किया है इसके बिना सारी आध्यात्मिक उपलब्धियाँ प्राप्त होने पर भी अप्राप्त होने के ही समान हैं। हमने धोबी की तरह अपने मन को पीट-पीट कर धोया है। केवल जप करने से तो किसी को लाभ मिलता ही नहीं।'' यह कहकर गुरुजी ने एक आँखों देखी घटना सुनाई। ''हिमालय में रहकर दो महात्मा तपश्चर्या कर रहे थे। वे निर्वस्त्र एवं मौनी थे। कुछ जमीन थी उससे कंद-मूल-फल प्राप्त हो जाता था। गुफा में रहते थे, खाते थे व जमीन निर्वाह करते थे। एक बार दोनों महात्मा गरमी के दिनों में गुफा के बाहर जमीन की सफाई कर रहे थे। अपनी-अपनी गुफा के सामने यह सफाई का क्रम एक दो दिन चलता रह। एक दिन एक महात्मा ने दूसरे महात्मा की थोड़ी सी जमीन पर कब्जा कर लिया। दूसरा महात्मा क्रोधित हुआ। उसने इशारा किया, त्योरियाँ चढ़ गई। दोनों मौन थे। उनका यह मौन युद्ध आगे बढ़ा, घूंसा-लात मारने तक नौबत आगई। एक ने दूसरे महात्मा की दाढ़ी उखाड़ ली, खून बहने लगा।''

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