ईश्वर और स्वर्ग प्राप्ति का सच्चा मार्ग
ईश्वर की सच्ची आराधना
नहीं दृशं संवननं त्रिषुलोकेषु विद्यते ।।
दया मैत्री च भूतेषु दानं च मधुरा चवाक् ।। ।। १२ ।। ।।
( म ० भा ० आदि० अ० ८७)
परमेश्वर का वशीकरण ऐसा तीनो लोंकों में नहीं जैसा कि दु:खियों पर दया करना, बराबर वालों सें मित्रता, उदारता और मीठी वाणी। नीलकंठ टीकाकार ने लिखा है कि- '' सवननं संभजनं परमेश्वर स्याराधनन् '' अर्थात् इस वचन में '' संवननम् का अर्थ परमेश्वर का आराधन है ।।
तप्यन्ते लोक तापेन प्रायश: साधवोजना : ।।
परमाराधनं तद्धि पुरूषस्या खिलात्मन: ।। ।। ४४ ।। ।।
( भा० ८/७ )
प्राय : करके सज्जन पुरुष लोक ताप से तप जाते है व अर्थात मनुष्यों पर विपत्ति देख उसको दूर करने के लिए दु:ख उठाते है और यही (दूसरों का दु:ख दूर् करना) भगवान को परम आराधना है ।।
दयया सवं भूतेषु संतुष्टया येनकेन वा ।।
सवेंन्द्रियोपशान्त्याच तुष्यत्याशु जनार्दन: ।। ।। १ ९ ।। ।।
( भा ० ४/३१)
सम्पूर्ण प्राणियों पर दया करने से अनायास से मिले पदार्थ से प्रसन्न ने से और इन्द्रियों के निग्रह से भगवान शीघ्र ही प्रसन्न होते है ।।