भवबन्धनों से मुक्त हो

आग की उपयोगिता सर्वविदित है । उसके अनेकानेक उपयोग है । यदि वह न हो, तो रसोई बनाना, शीत निवारण, प्रकाश जैसी आवश्यकताएँ भी पूरी न हो सकें और जो अनेक प्रकार के रसायन बनते हैं, धातु शोधन जैसे कार्य होते है, उनमें से एक भी न बन पड़े और जीवन दुर्लभ हो जाय । बिजली भी अब जीवन की महती उपयोगिताओं में, आवश्यकताओं में सम्मिलित हो गई है । घरों में बत्ती, पंखा, हीटर, कूलर, स्त्री आदि उसी के सहारे चलते हैं । कहीं पम्प चलाती और खेतों को सींचती है । यदि बिजली गुम हो जाय, तो दैनिक काम निपटाना कठिन हो जाता है। आग और बिजली की तरह ज्ञानेन्द्रियों की उपयोगिता है । हमारी समस्त गतिविधियाँ उन्हीं के सहारे चलती हैं । आँख न हो तो ? कान न हो तो ? जीभ न हो तो ? देखना, सुनना और बोलना कठिन हो जाय और मनुष्य अंधा, गूँगा, बहरा बनकर मिट्टी के ठेले को तरह किसी प्रकार जीवित भर रह सकेगा । हाथ-पैर न हों, तो वह गोबर के चोथ जैसा बैठा रहेगा और साँस भर लेता रहेगा । आग और बिजली की तरह भगवान ने इन्द्रियाँ भी इसीलिए दी हैं कि उनसे कठिनाइयों का हल निकाला जाय और प्रगति का द्वार खोला जाय । सुसंपन्न और प्रगतिशील बनने में इन्द्रियाँ ही प्रमुख भूमिका निभाती हैं ।

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