इस बात से जरा भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव जीवन में शरीर का महत्त्व कम नहीं है । शरीर की सहायता से ही संसार यात्रा संभव होती है । शरीर द्वारा ही हम उपार्जन करते हैं और उसी के द्वारा हम सारी क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं। यदि मनुष्य को शरीर प्राप्त न हो, तो वह तत्व रूप से कुछ भी करने में समर्थ न हो ।
यदि एक बार मानव-शरीर के इस महत्त्व को गौण भी मान लिया जाये, तब भी शरीर का यह महत्त्व तो प्रमुख है ही कि आत्मा का निवास उसी में होता है । उसे पाने के लिए किए जाने वाले सब प्रयत्न उसी के द्वारा सम्पादित होते हें । सारे आध्यात्मिक कर्म जो आत्मा को पाने, उसे विकसित करने और बन्धन से मुक्त करने के लिए अपेक्षित होते हैं, शरीर की सहायता से ही सम्पन्न होते हैं । अत: शरीर का महत्त्व बहुत है । तथापि जब इसको आवश्यकता से अधिक महत्व दे दिया जाता है, तब यही शरीर जो संसार बन्धन से मुक्त होने में हमारी एक मित्र की तरह सहायता करता है, हमारा शत्रु बन जाता हे । अधिकार से अधिक शरीर की परवाह करने और उसकी इन्द्रियों की सेवा करते