प्रत्येक कर्म का कोई अधिष्ठाता जरूर होता है । परिवार के वयोवृद्ध मुखिया के हाथ सारी गृहस्थी का नियन्त्रण होता है, मिलों कारखानों की देखरेख के लिए मैनेजर होते हैं, राज्यपाल-प्रान्त के शासन की बागडोर सँभालते हैं, राष्ट्रपति सम्पूर्ण राष्ट्र का स्वामी होता है । जिसके हाथ में जैसी विधि-व्यवस्था होती है उसी के अनुरूप उसे अधिकार भी मिले होते हैं । अपराधियों की दण्ड व्यवस्था सम्पूर्ण प्रजा के पालन पोषण और न्याय के लिये उन्हें उसी अनुपात से वैधानिक या सैद्धान्तिक अधिकार प्राप्त होते हैं । अधिकार न दिये जायें तो लोग स्वेच्छाचारिता, छल-कपट और निर्दयता का व्यवहार करने लगे । न्याय व्यवस्था के लिये शक्ति और सत्तावान होना उपयोगी ही नही आवश्यक भी है ।
इतना बडा संसार एक निश्चित व्यवस्था पर ठीक ठिकाने चल रहा है सूरज प्रतिदिन ठीक समय से निकल आता है, चन्द्रमा की क्या औकात जो अपनी माहवारी ड्यूटी में रत्ती भर फर्क डाल दे, ऋतुयें अपना समय आते ही आती और लौट जाती हैं, आम का बौर बसन्त में ही आता है, टेसू गर्मी में ही फूलते हैं, वर्षा तभी होती है जब समुद्र से मानसून बनता है । सारी प्रकृति, सम्पूर्ण संसार ठीक व्यवस्था से चल रहा है, जो जरा सा इधर उधर हुआ कि उसने मार खाई । अपनी कक्षा से जरा डाँवाडोल हुये कि एक तारे को दूसरा खा गया । जीवन क्रम में थोड़ी भूल हुई कि रोग शोक, बीमारी और अकाल-मृत्यु ने झपट्टा मारा । इतने बड़े संसार का नियामक परमात्मा सचमुच बड़ा शक्तिशाली है ।