यज्ञ पिता गायत्री माता
यज्ञ और गायत्री हमारी देव संस्कृति के दो मूल आधार हैं । इसी से यज्ञ को भारतीय संस्कृति का पिता और गायत्री को उसकी माता कहा गया है । इनके बिना तो फिर हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा । चारों ओर व्याप्त आसुरी शक्तियों को, लोभ-लालच-लिप्सा की पशु प्रवृत्तियों को, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अराजकताओं को तथा अपराधिक अवांछनीयताओं को समूल नष्ट करने हेतु यज्ञ और गायत्री ही अमोघ ब्रह्मास्त्र हैं । इन दोनों को भूल जाने के कारण ही भारतीय समाज की आज इतनी दुर्दशा हो रही है।
परमपूज्च गुरुदेव ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इस तथ्य को बहुत पहले ही पहचान लियाब्था । पशुता की भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों के दुर्गंधयुक्त दल-दल में आकंठ डूबे हुए मनुष्य को देखकर भी उन्होंने कभी निराशा या हताशा का अनुभव नहीं किया ।
Write Your Comments Here: