एक जन भ्रान्ति यह सदा से रही है कि विज्ञान और अध्यात्म परस्पर विरोधी हैं ।। दोनों में कुत्ते- बिल्ली जैसा बैर है एवं इनका परस्पर सहकार तो दूर, मिलना कतई सम्भव नहीं ।। तार्किकों का कहना है कि मनुष्य की प्रगति जो आज इस रूप में दिखाई देती है, उसका मूल कारण विज्ञान का उद्भव व विकास है ।। धर्म या अध्यात्म तो एक अफीम की गोली मात्र है जो प्रगति के स्थान पर अवगति की ओर ले जाकर व्यक्ति को अकर्मण्य बनाती है ।। परमपूज्य गुरुदेव इस तर्क से सहमत न हो वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की वकालत करते हुए कहते हैं कि यह नितान्त असत्य है कि पदार्थ विज्ञान और अध्यात्म दोनों एक- दूसरे के विरोधी हैं ।। पूज्यवर के अनुसार अध्यात्म एक उच्चस्तरीय विज्ञान है ।। यदि दृष्टिकोण परिष्कृत कर अध्यात्म और विज्ञान को उस नजरिये से देखा जा सके तो ज्ञात होगा कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।। दोनों एक- दूसरे के पूरक हैं ।। दोनों एक- दूसरे के बिना रह नहीं सकते तथा दोनों के पारस्परिक अन्योन्याश्रित सहयोग पर ही इस धरित्री का भविष्य टिका हुआ है ।।
अपने इस प्रतिपादन की पुष्टि में पूज्यवर ने अनेकानेक तर्क दिए हैं ।।