प्रज्ञावतार का कथामृत
भगवत्कथामृत की महिमा एवं महत्त्व को सभी ने एक स्वर से स्वीकार किया है। पौराणिक आख्यान के अनुसार, वेदज्ञानी महर्षि व्यास को चारो वेदों के संकलन-संपादन तथा गहन अनुशीलन के बावजूद जब आत्मिक - शांति एवं आत्मविकास के चरम -बिंदु की प्राप्ति नहीं हुई, तब उन्होंने अपनी व्यथा देवर्षि नारद को कह सुनाई। जीवन -विद्या के मर्मज्ञ नारद ने उनका समाधान करते हुए कहा -"जीवन संवेदना का पर्याय है। संवेदना के अंकुरण, प्रस्फुटन एवं अभिवर्धन के अनुरूप ही इसका इसका विकास होता है।
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