शक्ति संचय के पथ पर
शक्ति ही सुख की जननी है ।। बिना शक्ति सुख संभव नहीं ।। अशक्त मनुष्य किसी न किसी प्रकार के दु:ख में निरन्तर डूबे रहते हैं ।। निर्बलता एक बहुत बड़ा पाप है जिसके परिणाम स्वरूप नाना भांति के दु:ख उठाने पड़ते हैं ।। इसलिए दु:ख से बचने और सुख प्राप्त करने के लिए शक्ति संचय की आवश्यकता होती है ।।
ईश्वर प्राप्ति, धर्म साधना और परमार्थ की उपलब्धि के लिए भी बल की उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि सांसारिक सफलताओं के लिए, शक्ति सम्प्रदाय तो एक मात्र शक्ति को ही ईश्वर मानता है ।। गीता में भगवान् ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए शक्तिशाली बड़े उत्तम पदार्थो में ही अपनी स्थिति बताई हैं ।। मुक्ति और स्वर्ग भी पुरुषार्थ के, बल के फल है ।। उपनिषदों में स्पष्ट कर दिया गया है कि -"नायमात्मा बल हीनेन लभ्य: ।। "अर्थात्- " बलहीनों को आत्मा की प्राप्ति नहीं होती ।"
भौतिक और आत्मिक सुख शांति के लिए समृद्धि तथा स्वस्थता के लिए, जीवन धारण करने के लिए शक्ति की अनिवार्य आवश्यकता है ।। शक्ति संचय की महत्ता और आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इस पुस्तक में सब प्रकार के बलों को बढ़ाने की शिक्षा दी गई है ।। आशा है कि पाठकों के लिए यह विचारधारा उपयोगी होगी ।।
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