देवसंस्कृति का पुण्य प्रवाह इन दिनों सारे विश्व को आप्लावित कर रहा है। सभी को लगता है कि यदि कहीं कोई समाधान आज के उपभोक्ता प्रधान युग में जन्मी समस्याओं का है, तो वह मात्र एक ही है - संवेदना मूलक संस्कृति के दिग् दिगंत तक विस्तार में। यह संस्कृति देवत्व का विस्तार करेती रही है, इसलिए इसे देव संस्कृति कहा गया है।