इसे परम पूज्य गुरुदेव का अनुग्रह ही कहना होगा कि बीस वर्ष तक उनका अनवरत् सान्निध्य मिला ।। अपनी ओर देखते हैं तो ऐसा कुछ नहीं लगता कि उसे पूज्यवर के स्नेह अनुग्रह और अनुकम्पा के योग्य समझा जाये ।। अपनी पात्रता बताया जाये ।। एक सामान्य परिवार में जन्म, सामान्य शिक्षा, ऐसी किसी भी लौकिक उपलब्धि का अभाव जिसे युग निर्माण परिवार जैसे संगठन की सेवा में लगाया जा सके ।। पूज्य गुरुदेव ने इसके बावजूद अपनाया तो उनका स्नेह ही मानेंगे ।। स्वजन- परिजन कहते हैं कि 'समर्पण' और साहस' ही था जिसने हमें उनके निकट पहुँचाया ।। हो सकता है कि इसमें कोई सच्चाई हो लेकिन अपना मन उनके स्नेह को ही कारण मानने में प्रसन्न और संतुष्ट होता है ।।
पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में बिताये बीस वर्षो में१९ ६५ से १९७१ के बीच की अवधि तो ऐसी रही कि अहर्निश उनके साथ रहना पड़ा ।। इन सात वर्षो में सैकड़ों गायत्री महायज्ञ और युग निर्माण सम्मेलन हुए ।। तीन- तीन दिन के इन आयोजनों में गुरुदेव प्राय: सभी जगह पहुँचे ।। उनकी उपस्थिति और उद्बोधनों ने युग निर्माण आन्दोलन के बीज बिखेरे ।। लोक चेतना ने उन बीजों को ग्रहण किया ।।