सतयुग की वापसी

इस सदी की समापन वेला में अब तक हुई प्रगति के बाद एक ही निष्कर्ष निकलता है कि संवेदना का स्रोत तेजी से सूखा है, मानवी अन्तराल खोखला हुआ है। भाव- संवेदना जहाँ जीवन्त- जाग्रत् होती है, वहाँ स्वतः ही सतयुगी वातावरण विनिर्मित होता चला जाता है। भाव- संवेदना से भरे- पूरे व्यक्ति ही उस रीति- नीति को समझ पाते हैं, जिसके आधार पर सम्पदाओं का, सुविधाओं का सदुपयोग बन पाता है। समर्थता, कुशलता और सम्पन्नता की आए दिनों जय- जयकार होती देखी जाती है। यह भी सुनिश्चित है कि इन्हीं तीन क्षेत्रों में फैली अराजकता ने वे संकट खड़े किए हैं, जिनसे किसी प्रकार उबरने के लिए व्यक्ति और समाज छटपटा रहा है। इन तीनों से ऊपर उठकर एक चौथी शक्ति है— भाव- संवेदना यही दैवी अनुदान के रूप में जब मनुष्य की स्वच्छ अन्तरात्मा पर उतरती है तो उसे निहाल बनाकर रख देती है। इस एक के आधार पर ही अनेकानेक दैवी तत्त्व उभरते चले जाते हैं। सतयुग की वापसी इसी संवेदना के जागरण, करुणा के उभार से होगी। बस एक ही विकल्प इन दिनों है— भाव- संवेदना का जागरण। उज्ज्वल भविष्य का यदि कोई सुनिश्चित आधार है तो वह एक ही है कि जन- जन की भाव संवेदनाओं को उत्कृष्ट, आदर्श और उदात्त बनाया जाए। इसी से यह विश्व उद्यान हरा- भरा फला- फूला व सम्पन्न बन सकेगा।

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